35 पाठ की श्रंखला में हुआ 33 वें णमोकार महामंत्र पाठ का आयोजन
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35 पाठ की श्रंखला में हुआ 33 वें णमोकार महामंत्र पाठ का आयोजन

35 पाठ की श्रंखला में हुआ 33 वें णमोकार महामंत्र पाठ का आयोजन

35 पाठ की श्रंखला में हुआ 33 वें णमोकार महामंत्र पाठ का आयोजन

णमोकार महामंत्र को माना जाता है जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र- पं. शील चंद

यमुनानगर, 24 अगस्त (आर. के. जैन): श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में महामंत्र णमोकार मंत्र के 35 अक्षरों के 35 पाठ की श्रंखला में 33 वें पाठ का आयोजन धीरज जैन-विकास जैन परिवार द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंदिर प्रधान अजय जैन ने की तथा संचालन महामंत्री पुनीत गोल्डी जैन व उपाध्यक्ष मुकेश जैन ने किया। विशेष अतिथि के रूप में मंदिर संरक्षक गिरीराज स्वरूप जैन व पूर्व प्रधान अनंद जैन उपस्थित रहे। आनंद जैन ने संबोधित करते हुये बताया कि णमोकार मंत्र तीन लोक में अनुपम व संसार में सर्व पापों का नाशक है। संसार का उच्छेदक सर्व सिद्धीदायक, शिवसुख उत्पादक, केवलज्ञान उत्पादक महामंत्री है। इस नमस्कार महामंत्र का एक एक पद अत्याधिक प्रभावशाली नवग्रह शांति में णमोकार मंत्र वर्णानुसार कार्यकारी है। आगम में अरिहंत परमेष्ठी का रंग स्वेत है, सिद्ध परमेष्ठी का रंग लाल है, आचार्य परमेष्ठी का वर्ण पीला है, उपाध्याय परमेष्ठी का रंग हरा (नीला) है व साधू परमेष्ठी का रंग काला (श्याम) है। पं. शील चंद जैन ने णमोकार मंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये कहा कि णमोकार महामंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं किंतु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का दर्शन, स्मरण, चिंतन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है। इसलिए यह अनादि और अक्षय स्वरूपी मंत्र है। उन्होंने कहा कि यह लोकोत्तर मंत्र है, यह मंत्र णमोकार मंत्र बहुत आत्म सहायक है। आत्म विशुद्धि और मुक्ति के लिए नियमित रूप से णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए। गिरीराज जैन ने बताया कि लोकोत्तर मंत्र लौकिक और लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए णमोकार मंत्र सर्व कार्य सिद्धि कारक लोकोत्तर मंत्र माना जाता है। णमोकार मंत्र के स्मरण से रोग, दरिद्रता, भय तथा विपत्तियां दूर होती है। मन चाहे काम आसानी से बन जाते है, अत: यह निश्चित रूप में माना जा सकता है कि णमोकार महामंत्र हमें जीवन की समस्याओं, कठिनाईंयों, चिंताओं व बाधाओं से पार पहुंचाने में सबसे बड़ा आत्म सहायक है। इसलिए इस मंत्र का नियमित जाप करना बताया गया है। उन्होंने आगे बताया कि इस मंत्र में पांच परमेष्ठियों को नमस्कार की जाती है। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। संसार में सबसे उत्तम मंगल है। यह महामंत्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला कल्याणकारी अनादि सिद्ध मंत्र है। इसकी आराधना करने वाला स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। कार्यक्रम के अंत में आयोजकों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समाज का के गणमान्य व्यक्ति, महिलाएं एवं बच्चें उपस्थित रहे।